
कल अदा की जाएगी जिले के अधौर स्थित ईदगाह में ईद उल अजहा (बकरीद) की नमाज…
बलरामपुर/(आफताब आलम की कलम✍️से) ईद-उल-अजहा या बकरा ईद, जिसे बलिदान के त्योहार के रूप में भी जाना जाता है, दुनिया भर के मुसलमानों द्वारा मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण इस्लामी त्योहारों में से एक है क्योंकि यह खुशी का अवसर पैगंबर इब्राहिम (अब्राहम) द्वारा किए गए बलिदान के महान कार्य और अल्लाह (ईश्वर) की आज्ञाकारिता के रूप में अपने बेटे को बलिदान करने की उनकी इच्छा को याद करता है।

हजरत इब्राहिम अपने बेटे से बेहद प्यार करते थे और उसे कुर्बान होते देख नहीं सकते थे। इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली और बेटे को कुर्बान कर दिया। हालांकि, जब उन्होंने आंखें खोली, तो देखा कि उनका बेटा बगल में खड़ा है और असल में कुर्बान बकरा हुआ। तभी से इस दिन को बकरीद के रूप में मनाया जाने लगा।
आपको बता दे की मुसलमानों का विश्वास है कि अल्लाह ने इब्राहिम की भक्ति की परीक्षा लेने के लिए अपनी सबसे प्यारी चीज़ की क़ुर्बानी मांगी. इब्राहिम ने अपने जवान बेटे इस्माइल को अल्लाह की राह में क़ुर्बान करने का फ़ैसला कर लिया.
लेकिन वो जैसे ही अपने बेटे को क़ुर्बान करने वाले थे अल्लाह ने उनकी जगह एक दुंबे को रख दिया. अल्लाह केवल उनकी परीक्षा ले रहे थे.
दुनिया भर में मुसलमान इसी परंपरा को याद करते हुए ईद-उल-ज़ोहा या ईद-उल-अज़हा मनाते हैं. इस दिन किसी जानवर (जानवर कैसा होगा इसकी भी ख़ास शर्ते हैं) की क़ुर्बानी दी जाती है. इसीलिए भारत में इसे बक़रीद भी कहा जाता है.
इस ईद का संबंध हज से भी है जब दुनिया के लाखों मुसलमान हर साल पवित्र शहर मक्का जाते हैं. बकरे की क़ुर्बानी हज का एक अहम हिस्सा है.
बकरीद पैगंबर इब्राहिम द्वारा ईश्वर के प्रति अपना समर्पण प्रदर्शित करने के लिए अपने बेटे पैगंबर इस्माइल की बलि देने की इच्छा का जश्न मनाती है। हालाँकि, ऐसा करते समय, पैगंबर इब्राहिम को भगवान ने बलिदान देने से रोक दिया था, जब उन्होंने जिब्राइल (एंजेल गेब्रियल) को एक भेड़ के साथ भेजा था।